मात्र 63 दिनों का कार्यकाल में बदनामियों का पहाड़ लेकर विदा हुए थानाध्यक्ष राजीव पटेल
नवादा : पुलिस की नौकरी के बारे में आमतौर पर एक कहानी प्रचलित है कि तबादला और निलंबन कोई बड़ी सजा नहीं है। शायद वारसलीगंज के निलंबित थानाध्यक्ष राजीव कुमार पटेल को चाहने वाले कुछ ऐसा ही दलीलें दे रहे होंगे। एक हत्या की घटना के बाद अमूमन ऐसा होता भी नहीं है कि किसी थानाध्यक्ष को तत्काल निलंबित कर दिया जाए। लेकिन, वारिसलीगंज के थानाध्यक्ष के साथ ऐसा हुआ। खुद तो डूबे ही अपने साथ दो और सहयोगियों को भी लेकर बह गए। आखिर, ऐसा क्या हुआ कि एक हत्याकांड में 3 पुलिस अफसर नप गए।
जानिए पुलिस कप्तान द्वारा की गई कठोर कार्रवाई का राज क्या है?
राजीव पटेल ने 23 मई को वारिसलीगंज में योगदान दिया था। इसके पहले वे हिसुआ के थानाध्यक्ष थे। इंस्पेक्टर के लिए अधिसूचित वारिसलीगंज थानाध्यक्ष का प्रभार एक सब इंस्पेक्टर को मिल गया। शायद एसपी को वे ज्यादा भरोसेमंद लगे थे। लेकिन जब पदभार संभालने के महज 63 दिनों में ही बेआबरू होकर विदा हो गए तो सवाल उठना लाजिमी है।
ऐसा क्या हुआ?
झौर गांव में युवक अनिल तांती की हत्या हुई। युवक अनुसूचित वर्ग का था। पुलिस पर लापरवाही का आरोप लगा। इसके बाद निलंबन की कार्रवाई हुई। लेकिन, घटना के दिन थानाध्यक्ष राजीव पटेल तो अवकाश पर थे, फिर वे क्यों लपेटे में आ गए? यहीं से यह सवाल और गहरा जाता है कि बड़े साहब का भरोसा क्यों डिग गया। दरअसल, कार्यकाल तो कम समय का था लेकिन कारनामे अनेक थे। जिसका फिडबैक संभव है कि बड़े साहब को पहले से ही मिल रहा हो।
लोग बताते हैं कि जिस दिन योगदान दिया उसी दिन से इनके काम-काज का अंदाज निराला था। प्रारम्भ में अपने खास के बीच बेकार थाना बता रहे थे। रहने को थाना कैम्पस में सुंदर आवास नहीं था। पुराने आवास को चकाचक कराया। कैसे हुआ, किस-किस ने कराया खूब चर्चाएं होती रही। आवास की साज-सज्जा मसलन बैट्री, इनवर्टर, फ्रिज, एसी आदि का भी जुगाड़ हुआ। अब, आवास ऐसा हो गया कि बाहर की दुनियां ही भूल गए। 63 दिनों में थाना इलाके की सीमा को भी नहीं नाप पाए।
कुछ दिनों पूर्व का वाकया है
कोतवाली में बैठे कोतवाल साहब कुछ सज्जन के बीच बड़ी-बड़ी बातें कर रहे थे। इसी बीच बड़े साहब की घंटी बजी। पकरीबरावां रोड में मोसमा मोड़ के पास एक मुर्गी व्यवसायी की बाइक और रुपये लूट लिए गए थे। लूट बड़ी थी, करीब 8 लाख रुपये की। लेकिन पीड़ित ने कम रुपये लूट की शिकायत की थी। अखबारों में घटना की खबर छपी हुई थी, कोतवाल साहब को जानकारी नहीं थी। बड़े साहब ने उन्हें जगाया था। फोन कटने के बाद मोसमा मोड़ कहां है, कोतवाल साहब पता करने लगे। बात बाहर तक आ गई थी। झौर गांव में अनिल तांती की हत्या 24 जुलाई को हुई। लेकिन विवाद तो 10 जुलाई से ही चल रहा था।
एक और घटना की चर्चा आम है
कहा जा रहा है कि कोचगांव नहर पर एक ट्रैक्टर दुर्घटनाग्रस्त हुआ। चालक की मौत हो गई। थाना में केस दर्ज हुआ कि मालिक ही ट्रैक्टर चला रहा था और उसने उस युवक को जानबूझकर ट्रैक्टर से कुचलकर मार दिया। खेल लंबा था। ऐसी कई कहानियां है। मीडिया के भाईलोग बताते हैं कि कभी सीधी मुंह बात नहीं करते थे। नवादा नहीं पटना के स्तर से पोस्टिंग की बात करते थे।
ऊपर के पहुंच का बड़ा गुमान था
वे लोग भी सदमे में थे जो आते-आते उनपर बहुत कुछ दांव लगाया था। वैसे लोगों का फोन कॉल तक इन दिनों रिसीव नहीं कर रहे थे। बालू, दारू और साइबर का बड़ा खेल इस थाना इलाके की पहचान है। पता नहीं कितनी जुगलबंदी रही। सीनियर अफसरों का भी पक्ष में नहीं रहना इनके खिलाफ गया। किसी के भरोसे पर खरे नहीं उतरे। समय का खेल ऐसा की उनके साथ भी कोई नहीं रहा।इसीलिए कह रहे हैं कि जाते जाते बदनामियों का पहाड़ साथ लेते गए।
इसमें सच कितना है हम दावे के साथ नहीं कह सकते। लेकिन, इतना कह सकते हैं कि धुआं है तो आग लगी ही होगी। शायद, 63 दिनों पूर्व वारिसलीगंज से विदा हुए थानाध्यक्ष पवन कुमार की विदाई से जुड़ी तस्वीर अपने जेहन में रख लिए होते तो आज उन्हें यह दिन देखना नहीं पड़ता। क्या आम, क्या खास और क्या अपने सहयोगियों ने शानदार विदाई फूलों से सजे वाहन में बिठाकर दिया था।