ज्ञानवापी मुद्दे पर विपक्ष कोर्ट के निर्णय की प्रतीक्षा करे, राजनीति नहीं- सुमो

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1991 के धर्मस्थल कानून के विरुद्ध याचिकाओं पर भी जल्द फैसला करे सुप्रीम कोर्ट

पटना : वरिष्ठ भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने काशी के ज्ञानवापी मंदिर परिसर के मस्जिद रूप में इस्तेमाल करने पर हिंदू पक्ष ने जो आपत्तियां दायर की हैं, उस पर न्यायालय में सुनवाई हो रही है और न्यायालय के निर्देश पर ही वीडियोग्राफी-सर्वे आदि की कार्रवाई हो रही है। इस न्यायिक प्रकरण में भाजपा पर आरोप लगाना निराधार और दुराग्रहपूर्ण है। इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए।

सुमो ने कहा कि अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि स्थल विवाद को सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने सभी पक्षों की दलील और दावे सुनने के बाद पुरातात्विक प्रमाण और तथ्यों के आधार पर सर्वसम्मत निर्णय से सुलझाया। पांच जजों की उस पीठ में एक मुस्लिम जज भी थे। पूरे देश ने अयोध्या मुद्दे पर न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले को शांतिपूर्वक स्वीकार कर एक मिसाल कायम की। हमें देश की न्यायपालिका पर भरोसा रखना चाहिए।

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सुप्रीम कोर्ट को 1991 में बने उपासना स्थल कानून के विरुद्ध दायर याचिकाओं पर भी जल्द फैसला करना चाहिए। तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इस असंवैधानिक कानून के जरिये कुछ अपवादों को छोड़कर सभी धर्मस्थलों को 1947 के पहले की स्थिति में बनाये रखना बाध्यकारी बना दिया था। इस कानून के कारण हिंदू, सिख, जैन धर्म के लोगों को अपने धर्मस्थलों को अवैध कब्जे और अतिक्रमण से मुक्त कराने में कठिनाई आ रही है।

BJP नेता ने कहा कि यह सर्वविदित है कि पिछली सदियों में भारत पर आक्रमण करने वालों ने अयोध्या, मथुरा, काशी सहित देश के अनेक प्रमुख नगरों में मंदिरों को लूटा, ध्वस्त किया अथवा अपवित्र कर उनका मूल स्वरूप बदल दिया। काशी का ज्ञानवापी विश्वनाथ मंदिर भी ऐसे आक्रमणों का निशाना बना था। ऐसे लंबित मामलों में जब अदालतें सुनवाई कर रही हैं, तब सबको न्यायालय के निर्णय की संयम के साथ प्रतीक्षा करनी चाहिए।

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