तो क्या रिहा हो जायेंगे उमर खालिद और शर्जिल इमाम? राजद्रोह act पर चर्चा गरम

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नयी दिल्ली : सर्वोच्च न्यायालय ने राजद्रोह कानून पर भारत में तत्काल रोक लगाने का आदेश दिया है। इस संबंध में शीर्ष अदालत ने केंद्र और राज्यों को अंतरिम आदेश भी जारी कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश उन लोगों के लिए राहत के रूप में माना जा रहा है जो राजद्रोह कानून के तहत जेल में बंद हैं। लेकिन इसके साथ ही देशभर में यह बहस भी छिड़ गई है कि ऐसे तो जो वास्तव में इस कानून का उल्लंघन करने वाले हैं, वे भी इसका लाभ उठाते हुए रिहा हो जायेंगे या बच निकलेंगे। कुछ गंभीर मामले भी हैं जैसे उमर खालिद और शर्जिल इमाम का केस। दोनों आतंकियों से कनेक्शन और देशविरोधी हरकतों के आरोप में इस कानून के तहत अभी जेल में बंद हैं।

कानूनविदों ने बताये SC आदेश के मायने

देशद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मायने समझाते हुए कानूनविदों ने बताया कि ऐसे लोग जिनपर राजद्रोह का केस चल रहा है और जो जेल में हैं वो जमानत के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं। लेकिन उनपर जांच और अदालत की कार्रवाई पहले की तरह ही चलती रहेगी। ये कोर्ट पर निर्भर करेगा कि उन्हें जमानत दी जाए या नहीं। इसका मतलब यह है कि उमर खालिद और शर्जिल इमाम के मामले भी पूर्व की भांति ही अदालत में चलते रहेंगे और जो भी फैसला आएगा, उसके अनुसार उन्हें दंड या रिहाई मिलेगी।

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भारत में 13 हजार लोग बंद हैं इस एक्ट में

पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता विभू​तोष ओझा ने बताया कि अभी देशभर में राजद्रोह के मामले में करीब 13 हजार लोग जेल में हैं। जिनपर मामूली चार्ज है उन्हें तो फौरी राहत मिल जाएगी। लेकिन जिनपर राजद्रोह के गंभीर चार्ज लगे हैं और सबूत भी काफी ठोस हैं, उनके मामले पूर्व की भांति चलते रहेंगे। पर्याप्त सुनवाई के बाद मेरिट पर इनके मामलों में न्याय मिलेगा। बिहार के जहानाबाद निवासी शर्जिल इमाम और अन्य के मामले इसी श्रेणी में आते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून को स्थगित किया है। लेकिन इस कानून की लीगल वैलिडिटी खत्म नहीं हुई है। यह कानून पूर्ववत बना हुआ है।

जेएनयू के छात्र रहे उमर खालिद पर विवि कैंपस में देशविरोधी नारे के लिए राजद्रोह का केस दर्ज किया गया था। चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि जिन लोगों पर राजद्रोह का केस चल रहा है और जो जेल में हैं वो निचली अदालतों का रुख जमानत के लिए कर सकते हैं। ऐसे में खालिद भी इस मामले में निचली अदालत जा सकते हैं।

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