जनसंख्या की दृष्टि से भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के दौरान मोदी-योगी का नारा परवान चढ़ता चला गया। यह महज संयोग था या प्रयोग इस बारे में कुछ भी निश्चित नहीं कहा जा सकता है। यूपी सहित चार राज्यों में भाजपा के लगातार विजय के बाद चुनाव के दौरान प्रचलित यह नारा जुमला बनकर भारत की जनता की जुबान पर चढ़ गया है। कही यह भारत की राजनीति में मोदी योगी युग की शुरूआत तो नहीं!
जनता ने वंशवाद, जाति, धर्म की राजनीति को भी दफन कर दिया
2022 के चुनाव परिणाम ने यह पक्का कर दिया कि भारत की जनता ने भारतीय जनता पार्टी के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की संकल्पना वाली राजनीति को मन-मस्तिष्क से अपना लिया है। तुष्टीकरण व परिवारवाद की राजनीति के दिन अब लद चुके हैं। भारत की राजनीति में वही चलेगा जो भारत की संस्कृति, राष्ट्र के स्वाभिमान के साथ विकास व सुशासन के प्रति प्रतिबद्ध दिखेगा। ‘यह प्रचंड बहुमत भाजपा के राष्ट्रवाद, विकास एवं सुशासन के माडल को ऊत्तर प्रदेश की 25 करोड़ जनता का आशीर्वाद है। जनता ने वंशवाद, जाति, धर्म की राजनीति को भी दफन कर दिया है। हम सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास के अपने संकल्प के साथ आगे बढ़ेंगे।’
चुनाव परिणाम आने के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह प्रथम वक्तव्य आगे की उनकी राजनीति व रणनीतिक तैयारी का संकेत देता है। इस अर्थ में वे पूरी तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रास्ते पर चल चुके दिखते हैं। अपने विचार परिवार व संगठन के संस्कार, विकास के मुद्दे व सुशासन से कोई समझौता नहीं करने की दृढ़ता के साथ अपने प्रदेश की जनता को एकभाव से देखने का संकल्प लेने वाले योगी आदित्यनाथ नए अवतार मंे दिखने लगे हैं। नए अवतार वाले योगी आदित्यनाथ 2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी के लिए उपयोगी भी साबित हो सकते हैं। यह राजनीति यदि आगे बढ़ती है तो योगी ही मोदी के स्वाभाविक उत्तराधिकारी साबित होंगे।
जनाधार के बावजूद इन दोनों ने समय-समय पर अपने व्यवहार से यह बताया है कि ये संगठन से ऊपर नहीं
गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने एक मौलाना को जालीदार टोपी पहनाने से रोक दिया था। नरेंद्र मोदी के विरोधियों ने उस कार्यक्रम के फूटेज का उपयोग करते हुए उनके विरुद्ध अभियान चलाया था। उन्होंने विरोधियों के इस प्रयास को राजनीतिक अस्त्र उसका उपयोग अपने वोटरों की गोलबंदी के लिए किया था। योगी आदित्यनाथ इस मामले में मोदी से दो कदम आगे दिखते हैं। साक्षात्कार में वे मुसलमानों से संबंधित प्रश्नों पर खुलकर अपना पक्ष रखते हैं।
भारत के पांच राज्यों में संपन्न 2022 के विधानसभा चुनाव परिणाम ने 2024 के लोकसभा चुनाव के साथ ही भविष्य के राजनीतिक परिदृश्य के संबंध में भी स्पष्ट संकेत दे दिया हैं कि आने वाला कालखंड अब मोदी-योगी युग के नाम से जाना जाएगा। दोनों की राजनीतिक शैली में कुछ समानताएं भी है। इन दोनों की छवि निर्णय लेकर पीछे नहीं हटने वाले राजनेता की है। इसके साथ ही दोनों नेताओं का अपना जनाधार भी है। जनाधार के बावजूद इन दोनों ने समय-समय पर अपने व्यवहार से यह बताया है कि ये संगठन से ऊपर नहीं हैं।
सोनिया गांधी की कांग्रेस मिटाना चाहती थी लक्षित हिंसा विधेयक लाकर संघ विचार परिवार व हिंदू हित की बात करने वाले संगठनों का अस्तित्व
एक विचारधारा निष्ठ संगठन के रूप में भारतीय जनता पार्टी को अपने स्थापना काल से ही घोर भर्त्सना के दौर से गुजरना पड़ा था। कांग्रेस ने इस नवोदित पार्टी को राजनीतिक रूप से इसे अछूत बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। कांग्रेस व जवाहरलाल नेहरू से नजदीक वामपंथी संगठनों को यह पार्टी फूटी आखों से भी नहीं सुहाता था। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पं. दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में भर्त्सना व प्रताड़ना के दौर से गुजरने के बाद यह पार्टी भारत में स्थापित हो गयी। 21वीं सदी में भाजपा भारत की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।
लेकिन, तुष्टीकरण व जातिवाद के कॉकटेल वाली राजनीति के सामने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपा नहीं टिक पायी। अटल बिहारी वाजपेयी एक दर्जन से अधिक दलों के गठबंधन वाली सरकार के प्रधानमंत्री थे। ऐसे में वे अपनी पार्टी व विचार परिवार की आशा के अनुकूल सरकार चलाने में सक्षम नहीं थे। इसके कारण भााजपा को अपने विचार परिवार के संगठनों के कारण असहज स्थिति से गुजरना पड़ता था। ऐसे में दिल्ली की सत्ता पर कांगेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन यानी यूपीए की सरकार काबिज हो गयी। प्रधानमंत्री के पद पर नेहरू-गांधी परिवार का कोई आसीन नहीं हुए, लेकिन इस परिवार की मुखिया सोनिया गांधी ने कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता प्रणब मुखर्जी की जगह अपने विश्वस्त डा. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनवा दिया। मनमोहन सरकार के बारे में कहा जाता है कि वह सोनिया गांधी के रिमाट कंट्रोल से चलती थी।
दूसरी ओर वह समय नरेंद्र मोदी का अखिल भारतीय नेता के रूप में उभार का था। गुजरात दंगे के बाद नरेंद्र मोदी व भारतीय जनता पार्टी पर चारो ओर से प्रहार शुरू हो गए थे। सोनिया गांधी की कांग्रेस लक्षित हिंसा विधेयक लाकर संघ विचार परिवार व हिंदू हित की बात करने वाले संगठनों का अस्तित्व मिटाना चाहती थीं। सभी प्रकार के नैतिक व अनैतिक विरोधों के बावजूद नरेंद्र मोदी के चमत्कारिक नेतृत्व व अपने मजबूत संगठन के बल पर भाजपा आगे बढ़ती गयी। इस दल ने संघर्ष के उस कठिन दौर को पार ही नहीं किया बल्कि अपने बल पर संसद में दो तिहाई बहुमत वाली पार्टी बन गयी। मुसलिम तुष्टिकरण की राजनीति पर जोरदार प्रहार के माध्यम से नरेंद्र मोदी और योगी आदित्य नाथ ने भाजपा की रीति-नीति को स्पष्ट कर दिया। इसके बाद भारत की राजनीति में एकतरफ भाजपा व दूसरी ओर कांग्रेस व अन्य दल दिखने लगे। नरेंद्र मोदी की छवि एक ऐसे मजबूत नेता की बनी जिसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है।
भाजपा जब सेक्युलरिज्म के नाम पर चलने वाले राष्ट्र व समाज विरोधी मुसलिम तुष्टीकरण की राजनीति पर आक्रामक हुई तब भारत के बहुसंख्यक मतदाता हुए एकजुट
योगी आदित्यनाथ के संबंध में भी ऐसी ही बात है। लवजेहाद, अवैध कत्लखाने व गोवंश हत्या, राजनीतिक संरक्षण में पल रहे मुसलिम अपराधियों पर कठोर कार्रवाई जैसे निर्णयों से योगी आदित्यनाथ की छवि एक सशक्त व मजबूत नेता की बन गयी। मुस्लिम तुष्टिकरण व जाति की गोलबंदी के आधार पर राजनीति करने वाले दलों से भाजपा बिल्कुल अलग दिखने लगी। इसके परिणामस्वरूप ध्रुवीकरण के बावजूद चुनाव में भाजपा सभी दलों पर भारी रही।
लालू यादव के बिहारी एमवाई समीकरण का अर्थ उतर प्रदेश के 2022 के विधान सभा चुनाव में पूरी तरह से बदल गया। लालू यादव ने अपनी सता बचाने के लिए यादवों को मुसलमानों के साथ लाकर खड़ा कर दिया था। अपने इस राजनीतिक प्रयोग का नाम उन्होंने माई यानी एमवाई समीकरण दिया था। वास्तव में लालू यादव ने कांग्रेस की राजनीतिक रणनीति से आइडिया लेकर अपने इस नए फार्मूले की रचना की थी। यही फार्मूला मुलायम सिंह यादव ने उतर प्रदेश में अपनाया। समाजवादी पृष्ठभूमि वाले इन नेताओं द्वारा इस फार्मूले के अपनाए जाने के बाद भारत की राजनीति में स्पष्ट विभाजन हुआ। इस विभाजन में कांग्रेस व समाजवादी पृष्ठभूमि वाले सभी दल एक खेमे में दिखे। लेकिन, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा जब सेक्युलरिज्म के नाम पर चलने वाले राष्ट्र व समाज विरोधी मुसलिम तुष्टीकरण की राजनीति पर आक्रामक हुई तब भारत के बहुसंख्यक मतदाता एकजुट हो गए। पुलवामा की घटना के बाद नरेंद्र मोदी की सरकार की कार्रवाई से भारत की जनता को यह विश्वास हो गया कि नरेंद्र मोदी के हाथों में ही भारत सुरक्षित है।
अयोध्या में राम मंदिर समस्या का शांतिपूर्ण समाधान, संविधान से अनुच्छेद 370 को विलोपित कर कश्मीर के अलग राज्य के दर्जे को समाप्त कर मोदी सरकार ने यह प्रमाणित कर दिया कि वह जो कहती है वह करती भी है। मोदी सरकार के ही तर्ज पर उतर प्रदेश की योगी सरकार ने मजहब के नाम पर उत्पात करने वालों को सबक सिखाने में कोई परहेज नहीं की। तुष्टीकरण की राजनीति के कारण क्षुब्ध बहुसंख्यक लोगों को योगी की यह छवि भा गयी और लोग जातिभेद भूलाकर उनके साथ खड़े हो गए।
कर्नाटक जैसे दक्षिण के राज्यों में भी प्रधानमंत्री मोदी के बाद योगी ही सबसे अधिक लोकप्रिय
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पं. गोविंद बल्लभ पंत को उस समय के प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने 10 जनवरी 1955 को दिल्ली बुलाकर गृहमंत्री पद की जिम्मेदारी दी थी। इसके बाद उनके उतराधिकारी के रूप में डा. सम्पूर्णानंद ने उतर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली थी। उतर प्रदेश के दूसरे मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने कहा था कि संकट के समय भारत की प्रकृति अपनी आवश्यकता के अनुसार नेता गढ़ लेती है और उस नेता के पीछ भारत की जनता खड़ी हो जाती है। महात्मा गांधी से लेकर नरेंद्र मोदी तक जब हम विचार करते हैं तो डा. सम्पूर्णानंद की वह बात सही प्रतीत होती है।
भारत की राजनीति में परिवारवाद का रोग कांग्रेस पार्टी से शुरू होकर अन्य दलों तक फैलता चला गया। सबसे पहले इसने समाजवाद के नाम पर शुरू हुई क्षेत्रीय दलों को पूरी तरह से अपनी चपेट में ले लिया। परिवारवाद के कारण भ्रष्टाचार व राजनीति के अपराधीकरण का रोग गंभीर रूप धारण करता चला गया। इसके कारण आम आदमी की भलाई के लिए चलायी जाने वाली योजनाओं का बुरा हाल हो गया। इस स्थिति से निबटने के लिए भाजपा के प्रचारक मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक मॉडल दिया। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी नरेंद्र मोदी के परिवार के लोग उनसे दूर रहे। नरेंद्र मोदी का बाल विवाह हुआ था। आपसी सहमति से उनकी पत्नी उनसे दूर रहती थी।
नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में अपन संपूर्ण जीवन राष्ट्र व समाज के लिए समर्पित कर दिया था। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की योजना से वे भाारतीय जनता पार्टी में संगठन महामंत्री के रूप में काम करने लगे। लेकिन, उनका अपना परिवार उनके साथ नहीं रहता है। इस प्रकार मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोद ने परिवारवाद की राजनीति के विरोध में एक माडल दिया है। योगी आदित्यनाथ प्रधानमंत्री नरंेद्र मोदी के उस माडल के लिए देश में सबसे उपयुक्त व्यक्ति हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह योगी आदित्यनाथ की भी पूरे भारत में लोकप्रियता है। उतर प्रदेश के बाहर के चुनाव में भी प्रत्याशी उनका कार्यक्रम लेना चाहते है। कर्नाटक जैसे दक्षिण के राज्यों में भी प्रधानमंत्री मोदी के बाद योगी ही सबसे अधिक लोकप्रिय नेता हैं।
उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है प्रधानमंत्री बनने का रास्ता
कहा जाता है कि भारत के प्रधानमंत्री बनने का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है। आजादी के बाद से अब तक सर्वाधिक प्रधानमंत्री देने वाला राज्य उतर प्रदेश ही रहा है। आपातकाल के बाद पहली बार उत्तर प्रदेश के बाहर से मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने थे लेकिन, वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके थे। राजनीतिक परिस्थिति के कारण एचडी देवेगौड़ा और इन्द्र कुमार गुजराल भारत के प्रधानमंत्री बने जो उत्तर प्रदेश के नहीं थे। ये भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मूलतः उत्तर प्रदेश के रहने वाले नहीं हैं लेकिन भारत की सांस्कृतिक राजधानी वाराणसी से वे पहली बार लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होर प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे थे। वे स्वयं को काशी का वासी कहते हैं।
इस चुनाव में भाजपा के विजयी होने से दो रिकार्ड बने हैं। पहला यह कि 35 वर्षों बाद यूपी विधानसभा चुनाव में किसी एक पार्टी को लगातार दूसरी बार विजय मिला है। 1985 तक कांग्रेस के पास यह रिकार्ड था लेकिन उसके बाद किसी भी पार्टी को यूपी में लगातार विजय नहीं मिला। चुनाव के पूर्व योगी आदित्यनाथ को लेकर भाजपा में थोड़ी देर के लिए विवाद हुआ था लेकिन बहुत जल्द भाजपा ने घोषणा कर दी थी कि 2022 के चुनाव में योगी आदित्य नाथ ही मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे। इसके बाद योगी आदित्यनाथ पूरे मन से चुनाव की तैयारी में लग गए थे।
आजादी के बाद उतर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में लगातार दूसरी बार शपथ लेने वालों में योगी आदित्य नाथ का नाम अकेला है। यूपी के प्रथम मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत आजादी के पूर्व संयुक्त प्रांत के मुख्यमंत्री थे। भारत का संविधान लागू होने के बाद वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जरूर बने लेकिन अपने कार्यकाल पूरा होने के पूर्व ही वे केंद्र में गृहमंत्री बना दिए गए थे। इस प्रकार योगी आदित्य नाथ के नाम ही लगातार दूसरी बार यूपी का मुख्यमंत्री बनने का रिकार्ड हैं।
आजादी के पूर्व 17 जुलाई 1937 को बिटिश भारत में पंडित गोविंद बल्लभ पंत को संयुक्त प्रांत यानी उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया था। वे 2 नवम्बर 1939 तक इस पद पर रहे थे। इसके बाद 1 अप्रैल 1946 को दूसरी बार उन्होंने फिर से इस पद की जिम्मेदारी संभाली थी। वे 15 अगस्त 1947 तक इस पद पर रहे थे। जब भारत का अपना संविधान लागू हो गया तब वे संयुक्त प्रांत का नाम बदलकर उतर प्रदेश कर दिया गया। स्वतंत्र भारत के नवनामित राज्य उतर प्रदेश के वे प्रथम मुख्यमंत्री बने थे। 26 जनवरी 1950 से लेकर 27 दिसंबर 1954 तक वे इस पद पर रहे थे।