पटना : 4 राज्य में हुए विधानसभा चुनाव का परिणाम अब से कुछ ही देरी के बाद आ जाएंगे। परिणाम किसके पक्ष में आएगा, यह शाम तक साफ हो जाएगा।लेकिन इस चुनाव परिणाम को बिहार की नजरों से देखें तो बिहार की दो बड़ी पार्टियों को की साख दांव पर है।यह दोनों पार्टी वर्तमान में बिहार सरकार में भाजपा के साथ शामिल है। लेकिन इन राज्यों में भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ा है।
जदयू ने यूपी में भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ने का किया था फैसला
पहली पार्टी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड है। इस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बिहार के मुंगेर लोकसभा क्षेत्र के सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह हैं।इनकी पार्टी ने यूपी में भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ने का फैसला किया।
जदयू ने अपने 27 उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा। इन 27 उम्मीदवारों में से दो उम्मीदवार थे जिनकी चर्चा काफी देखने को मिला।पहला उम्मीदवार वो थे जो मालेगांव बम ब्लास्ट के आरोपी थे। लेकीन, जैसे ही यह मामला प्रकाश में आया जदयू ने आनन -फानन में जदयू ने टिकट वापस लिया।वहीं, दूसरा नाम बाहुबली नेता धनंजय सिंह को जदयू ने अपना टिकट दिया। जिसके बाद अब आज जब मतगणना हो रही है तो अभी तक की जानकारी के अनुसार जब मात्र एक सीट पर ही आगे नजर आ रही है। बहरहाल, देखना यह है कि उत्तर प्रदेश में जदयू इस सीट के अलावा अन्य सीट पर भी जीत हासिल कर पाती है या नहीं।
मणिपुर में जदयू की स्थिति काफी बेहतर
वहीं, दूसरे प्रदेश मणिपुर की बात करें तो यहां जदयू की स्थिति काफी बेहतर नजर आ रही है।मणिपुर में विधानसभा की 60 सीटें पर चुनाव हुई है। यहां जेडीयू दो सीटों पर आगे चल रहा है तथा दो जीत चुका है। मणिपुर में जेडीयू ने टिपाईमुख विधानसभा सीट पर एनएस सनाते जीत के साथ अपना खाता खोला। इसके बाद पार्टी ने जीरीबांग सीट भी जीत ली है। हालांकि, यहां भी सबसे अधिक बढ़त भाजपा के पास ही है।
उत्तर प्रदेश में मुकेश सहनी की पार्टी की अजमा रही किस्मत
इसके अलावा दूसरी पार्टी बात करें तो बिहार सरकार में पशुपालन मंत्री मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ रही है। वीआईपी ने यहां 52 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारा है। सहनी ने यहां दो सीटिंग विधायकों को भी टिकट देकर अपना उम्मीदवार बनाया है।लेकिन अभी तक के रुझानों के अनुसार सहनी की पार्टी यहां खाता खोलते हुए भी नजर नहीं आ रही है। जबकि उत्तर प्रदेश में खुद मुकेश सहनी ने कई दिनों तक चुनाव प्रचार किया था लेकिन उनके परिवार का कोई भी असर जनता पर फिलहाल देखने को नहीं मिल रहा। बहरहाल, देखना यह है कि आने वाले घंटों में क्या मुकेश सहनी की पार्टी उत्तर प्रदेश में अपना खाता खोल पाती है या फिर जीरो पर ही लुढ़क जाती है।