उक्रेन से आरा लौटे छात्रों के बताई आपबीती, अभिभावकों ने ली चैन की सांस 

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आरा : यूक्रेन में रहकर मेडिकल की पढ़ाई कर रहे सत्यम राज आरा स्थित अपने घर सुरक्षित पहुँच गए| उनकी सुरक्षित घर वापसी से उनके माता-पिता सहित पुरे परिवार में ख़ुशी की लहर फ़ैल गयी| माता-पिता का मानना है कि उन्हें तथा उनके पुत्र को भगवान् की कृपा से नयी जिंदगी मिली है| उनकी आँखों की ख़ुशी के आंसू साफ़ नज़र आ रहे थे| 

सत्यम राज ऑपरेशन गंगा के तहत शुक्रवार की सुबह भारतीय विमान से रोमानिया से नयी दिल्ली पहुंचा| जिसके बाद शाम को ही विशेष विमान से अन्य बिहारी छात्रों के साथ नयी दिल्ली से पटना पहुंचा जहाँ बिहार सरकार ने उनका स्वागत किया| बाद में सत्यम राज तथा अन्य को बिहार सरकार ने सुरक्षित उनके घर तक पहुंचाया| सत्यम राज ने कहा कि वे लोग मौत के मुहं से बाहर निकले हैं|

अपने अनुभव को साझा करते हुए सत्यम राज ने कहा कि नीट की परीक्षा अच्छे नंबर से पास करने के बाद उसका नामांकन उक्रेन के मेडिकल कॉलेज में हुआ था| उसने बताया कि उसने उक्रेन इसलिए चुना क्योंकि वहां मेडिकल की पढ़ाई भारत के निजी मेडिकल कॉलेजों से ज्यादा सस्ती है| 23 फरवरी को ही उसकी सेमीटर प्रथम सत्र की परीक्षा खत्म हुयी थी| इसी बीच रूस एवं उक्रेन के बीच युद्ध शुरू हो गया| उसी दिन से सभी छात्र दहशत में जी रहे थे| रात में उन्हें बंकर में रहना पड़ता तथा पुरे शहर की बिजली भी काट दी जाती थी|

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सत्यम राज ने बताया कि वे लोग किसी तरह बस से रोमानिया के बॉर्डर तक जाने में सफल हुए पर बस ने उनलोगों को रोमानिया बॉर्डर से करीब 10 किलोमीटर पहले ही उतार दिया| उनलोगों को जीरो डिग्री तापक्रम में खुले आसमान के नीचे रात गुजारनी पड़ी| बॉर्डर पर उक्रेन सैनिकों द्वारा कोई भी व्यवस्था नही थी| इसी बीच लोगों को पंक्तिबद्ध करने के क्रम में उक्रेन सैनिकों ने उनपर आंसू गैस के गोले छोड़े तथा लाठी चार्जे भी किया|

वालमार्ट पर वैक्यूम बम भी छोड़े गए थे| किसी तरह वे बर्फ पर 10 पैदल चलकर रोमानिया पहुंचे जहाँ के लोगों ने उनका शानदार स्वागत किया| रोमानिया वासियों ने उनलोगों के एसी युक्त कमंरे पर रखा, नए कम्बल तथा गर्म कपडे मुहैया कराया तथा खाने को अच्छा खान भी दिया| चलते समय भी उनलोगों ने सभी कम्बल तथा उनी कपडे उनलोगों को दे दिए| सत्यम राज ने बताया कि जब से रूस तथा उक्रेन का युद्ध शुरू हुआ और वे लोग जबतक उक्रेन में रहे उन्हें ठीक से खाने को भी नही मिला था| रोमानिया पहुचने के पहले तक वे लोग खौफ की जिंदगी जी रहे थे| सिर्फ भगवान् का सहारा था| अपने घर पहुच कर सत्यम राज राहत महसूस कर रहा है|

बातचीत के क्रम में सत्यम राज के पिता शशिधर पाण्डेय ने भारत तथा बिहार सरकार को पुत्र की सुरक्षित वतन वापसी के लिए धन्यवाद दिया| उन्होंने कहा कि रूस उक्रेन के बीच युद्ध की सुचना के दिन से ही पूरा परिवार दहशत में था| वे सभी सिर्फ भगवान् से प्रार्थना कर रहे थे और उनकी प्रार्थना ने ही उनके पुत्र को सुरक्षित घर पहुंचाया| उनका कहना था कि पुत्र की सुरक्षित वापसी मानो उनलोगों के लिए नव जीवन के सामान थी|

इसी तरह आरा नगर थानान्तर्गत शिवगंज की अश्विनी भी सुरक्षित घर लौट आई है। आरा लौटने के बाद अश्विनी ने कहा कि वो क्यीव में O O Bogomolates Medical University की छात्रा है। घर वापस लौटने के बाद काफी सुकून मिल रहा है। लेकिन वहां अभी भी बिहार और आरा के कुछ बच्चे फंसे हुए हैं। कुछ तो जूनियर भी हैं जो अभी-अभी आए थे। उनकी टेंशन लगी रहती है।

अश्विनी ने बताया कि हमारे हॉस्टल के पास तक रूसी सेना पहुंच गई थी और हमला करते हुए गोला-बारूद दाग रही थी। हम लोग बंकरों में थे। ऐसा लगता था जैसे जिंदगी थम गई है। भारत सरकार हमें एडवाइस देती थी कि आप बॉर्डर तक आ जाएं। बंकर से बॉर्डर तक हमें ही तय करना होता था कि कैसे जाएंगे। हम लोगों ने जान हथेली पर रखकर गूगल मैप के सहारे बॉर्डर क्रॉस किया था। इसके बाद इंडियन एंबेसी ने मदद की और हम सुरक्षित लौटे।

अश्विनी ने कहा कि पेरेंट्स का सपना था, हम जिस लक्ष्य को लेकर वहां गए थे, उसे पूरा करके लौटें। लेकिन युद्ध के कारण हमारा सपना टूटता हुआ नजर आ रहा है। अभी तो ऐसा लग रहा है कि स्टडी पूरी होगी पाएगी या नहीं।

युद्ध की विभीषका झेल रहे यूक्रेन में फंसे आरा के 13 छात्रों में से पांच छात्र अपने घर लौट आए। स्थिति यह थी की घर आए बच्चे पिछले पांच-सात दिनों में अपने साथ बीते हुए पल-पल की कहानी सुना रहे थे और मां की आंखों से अविरल आंसू बह रहे थे। आरा के अधिकांश बच्चे यूक्रेन के पड़ोसी देशों में पहुंच गए हैं और भारतीय दूतावास की निगरानी में भारत के लिए उड़ान भरने का इंतजार कर रहे हैं।

भोजपुर ज़िले के उदवंतनगर थानान्तर्गत उदवंतनगर के मिथलेश सिंह के पुत्र राकेश सिंह के लिए अभी भी मुश्किलें खत्म नहीं हुई है। वे अभी भी खारकीव के पास फंसे हुए हैं। मिसाइल हमले से दहल रहे खारकीव से लगभग 40 किलोमीटर दूर किसी बंकर में राकेश ने लगभग चार सौ भारतीय छात्रों के साथ शरण ली है। भारतीय दूतावास उन सभी के साथ संपर्क में है। हालंकि, उनके खाने-पीने की काफी दिक्कत है। राकेश के पिता ने बताया कि पुत्र ने बताया है कि दो दिनों बाद गुरुवार को सभी को एक खीरा और ब्रेड दिया गया। खारकीव रूस की सीमा के करीब है और अभी उस ओर से निकलने का सेफ पैसेज तैयार नहीं हुआ है। परिवार वाले पल-पल की खबर ले रहे हैं।

के जी रोड आरा के उक्रेन में मेडिकल फोर्थ सेमेस्टर के छात्र विकास कुमार ने बताया कि उन लोगों ने सोचा भी नहीं था कि अचानक ऐसे हालात हो जाएंगे। कई दिनों तक उन्हें माइनस तीन डिग्री तापमान में खुले आसमान के नीचे रहना पड़ा। उन लोगों ने कहा कि बार्डर पार करने के बाद एंबेसी ने उनक पूरा ख्याल रखा, अगर सरकार पहल नहीं करती तो कोई वहां से वापस नहीं लौट पाता।

यूक्रेन से लौटै पीरो के राजापुर निवासी मेडिकल के छात्र मो.रिजवान वतन वापसी के बाद परिवार के काफी सुकून महसूस कर रहे है। रिजवान कीवोग्राद में थे और काफी संघर्ष के बाद हंगरी बार्डर पर पहुंचे। डोनेक्स मेडिकल यूनिवर्सिटी से छह साल का एमबीबीएस कोर्स कर रहे मो रिजवान का कोर्स पूरा होने में केवल एक साल बाकी रह गए हैं। बाकी कोर्स कैसे पूरा होगा, यह पूछे जाने पर रिजवान ने बताया कि उनके संस्थान ने सभी छात्रों को यह आश्वासन दिया है कि यदि यूक्रेन के हालात जल्द नहीं सुधरते हैं तो हंगरी के किसी मेडिकल यूनिवर्सिटी में ट्रांसफर करा कर शेष कोर्स पूरा कराया जाएगा।

संदेश के कुमार विपुल 2019 में यूक्रेन गये थे। अपने पैतृक गांव रेपुरा लौटे। उनकी वापसी पर परिवार के द्वारा पूजा-अर्चना की गई तथा गांव में मिठाई बांटी गई। विपुल ने कहा कि वापसी का वह मंजर वह जीवनभर नहीं भूल सकते, अपने साथियों के साथ दो दिनों तक बॉडर पर रुके रहे । बॉडर पर करने के लिए काफी भीड़ थी । उस समय हमलोगों पर यूक्रेनियन बॉडर पुलिस हवाई फायर एवं मिर्ची स्प्रे का छिड़काव भी किया । 27 फरवरी को बॉडर पर करने के बाद रोमानिया के लोगों ने भारतीयों का स्वागत किया और पानी, भोजन, कपड़े और कंबल दिए। विपुल ने भारत सरकार के साथ घर तक पहुंचाने के लिए बिहार सरकार को भी धन्यवाद दिया।

अश्विनी पहुंचीं पटना, साक्षी एयरपोर्ट से लौटी : यूक्रेन में फंसी आरा की दो बेटियों में से एक अश्विनी कुमार दिल्ली से पटना पहुंच गईं। उन्हें स्लोवाकिया के रास्ते भारत लाया गया। दिल्ली से पटना पहुंचने के बाद आरा से पिता लक्ष्मण चौधरी बेटी को लेने वहां गए। अश्विनी ने बताया कि सरकार के प्रयास से वह सुरक्षित यहां पहुंच सकीं हैं। आरा के मनेाज कुमार की पुत्री साक्षी श्रेया को बुडापेस्ट एयरपोर्ट पर लाने के बाद वापस होटल भेज दिया गया। पिता ने बताया कि विमान में उपलब्ध सीट के आधार पर वहां फंसे लोगों का एनरालमेंट हो रहा है, उनकी बेटी बुडापेस्ट में एंबेसी की देखरेख में है और एक-दो दिनों आएगी।

आशुतोष ने कहा कि यूक्रेन की जनता या यूक्रेन के सैनिक हमारे बस पर लगे इंडियन फ्लैग को देखकर बहुत ही सहयोग करते थे. वे हमें आसानी से आगे जाने देते थे. भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा जारी एडवाजरी के बारे बताते हुए आशुतोष ने बताया कि यह देर से जारी हुई थी.

सरकार द्वारा स्पष्ट नहीं कहा गया कि निकल ही जाना है. ऐच्छिक रूप में कहा गया था. हम स्टूडेंट्स थे, क्लासेज चल रहे थे इसलिए नहीं निकले. भारत सरकार द्वारा फ्लाइट की व्यवस्था प्रारंभ में कम थी. शुरू में केवल 2 फ्लाइट थी जबकि आने वालों की संख्या बहुत अधिक थी. इस मेडिकल के छात्र ने कहा कि वहां पढ़ाई कम खर्चीली है जबकि अपने देश में बहुत महंगी है. सरकार को यहीं पर ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए. आशुतोष ने बताया कि अभी बहुत से छात्र वहां फंसे हुए हैं. उनको लाने के लिए सरकार को और ऐक्टिव होने की आवश्यकता है.

आशुतोष के पिता अनिल कुमार श्रीवास्तव ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि भारत सरकार के प्रयास से मेरा बेटा सकुशल लौटा है. यहां अधिक फीस और व्यवस्था नहीं होने के कारण ही हम जैसे अभिभावकों को अपने बच्चों को मेडिकल पढ़ने के लिए बाहर भेजना पड़ता है. अगर यहां व्यवस्था हो जाए तो हम क्यों भेजेंगे? सरकार को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए. वहीं, यूक्रेन में फंसे होने के कारण घबरायी आशुतोष की मां ने भी आज सुकून की सांस ली।

राजीव एन अग्रवाल की रिपोर्ट

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