पंचतत्व में विलीन हुईं सरस्वती पुत्री लता मंगेशकर, पीएम मोदी समेत अन्य ने दी श्रद्धांजलि
स्वर कोकिला लता मंगेशकर मुंबई के शिवाजी पार्क में पंचतत्व में विलीन हो गईं। रविवार को शाम 7:15 बजे उन्हें मुखाग्नि दी गई। राजकीय सम्मान के साथ लता जी के दाहसंस्कार से पूर्व उनके अंतिम दर्शन के लिए आम से लेकर खास लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शिवाजी पार्क पहुंच लताजी के पार्थिव शरीर पर पुष्पांजलि अर्पित की और अंतिम प्रणाम किया। पीएम मोदी के अलावा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, उनके पुत्र आदित्य ठाकरे, मनसे प्रमुख राज ठाकरे, राकांपा सुप्रीमो शरद पवार, केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल, क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर, अभिनेता शाहरुख खान, पार्श्वगायिका अनुराधा पौडवाल, गायक शंकर महादेवन, गीतकार जावेद अख्तर समेत कई लोगों ने स्वर सम्राज्ञी को श्रद्धांजलि दी। भारत रत्न स्वर सम्राज्ञी के निधन से देश भर में शोक की लहर दौड़ गई है। 6 फरवरी की सुबह 8 बजकर 12 मिनट पर मुंबई के ब्रीचकैंडी अस्पताल में लता जी ने अंतिम सांस ली।
शायद फिर इस जनम में, मुलाकात हो न हो…
शायद ! यह सपना ही होता, मगर यह कहते हुए बेहद अफसोस हो रहा है कि भारत की स्वर कोकिला का यूं शांत हो जाना, उनका दुनिया को अलविदा कह जाना सबसे बड़ी क्षति है। लता मंगेशकर कोविड संक्रमित थीं, रविवार को उनके निधन का समाचार सुनते ही पूरा देश शोकाकुल हो गया। लता के निधन पर केंद्र सरकार ने दो दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया है। लता के निधन पर राजनीतिक हस्तियों से लेकर बॉलीवुड इंडस्ट्री से जुड़े दिग्गजों ने शोक व्यक्त किया है।
आईए एक नजर डालते हैं, लता मंगेशकर के जीवन पर…..
28 सितंबर, 1929 में इंदौर में जन्मी लता मंगेशकर पंडित दीनानाथ मंगेशकर की बड़ी बेटी थीं। हृदयनाथ मंगेशकर, उषा, मीना और आशा भोसले लता के छोटे भाई-बहन थे और सभी का झुकाव शुरू से संगीत की तरफ था। लता शुरू से ही गायिका बनना चाहती थीं। पिता की मृत्यु के बाद उनके परिवार को बहुत संघर्ष करना पड़ा। पैसों के लिए लता मंगेशकर ने हिंदी और मराठी फिल्मों में अभिनय किया। जब उनका मन अभिनय से ऊबने लगा तो संगीत की ओर मन फिर भागने लगा। धीरे-धीरे उन्होंने इसमें अपना करियर तलाश किया और साल 1942 में पार्श्व गायिका के तौर पर गाना शुरू किया।
लता मंगेशकर की शिक्षा-दीक्षा
वैसे तो लता जी को छह विश्वविघालयों ने डाँक्टरेट की डिग्री प्रदान कर रखी है। लेकिन लता मंगेशकर जी ने ज्यादा पढाई नही की थी। वो केवल कुछ महिने हीं स्कूल गयी थी। पहली क्लास में हेडमास्टर से नाराज हुई और उसके बाद इन्होने कफी स्कूल की तरफ मुँह उठा कर भी देखा।
ऐसे मिला पहला ब्रेक
लता को पहला गाना एक मराठी फिल्म में मिला था, लेकिन वह किसी कारणवश रिलीज नहीं हो पाया था। उसके बाद 1945 में उस्ताद गुलाम हैदर अपनी आने वाली फिल्म के लिए लता को एक प्रोड्यूसर के स्टूडियो ले गए। इस फिल्म में कामिनी कौशल मुख्य भूमिका निभा रही थीं। वह चाहते थे कि लता उस फ़िल्म के लिए पार्श्वगायन करे, लेकिन गुलाम हैदर को निराशा हाथ लगी।
1947 में वसंत जोगलेकर ने अपनी फिल्म ‘आपकी सेवा में’ में लता को गाने का मौका दिया। इस फिल्म के गानों से लता की खूब चर्चा हुई। इसके बाद लता ने फिल्म ‘मजबूर’ के गानों ‘अंग्रेजी छोरा चला गया’ और ‘दिल मेरा तोड़ा हाय मुझे कहीं का न छोड़ा तेरे प्यार ने’ जैसे गानों से अपनी धाक जमाना शुरू की। हालांकि वह ख्याति प्राप्त करना फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
लता मंगेशकर का स्वर्णिम युग…
वैसे तो अगर कहा जायें तो लता जी ने हमेशा सदाबहार गाने गाए जिसको लोग आज भी सुनकर मनमोहित हो जाते है। लता जी ने अपना पूरा जीवन गीत-संगीत को समर्पित कर दिया। उन्होनें लगभग 20 भाषाओं में 30,000 गानों को अपने सुरों से नवाजा जिसके लोग आज भी कायल है। लता जी की आवाज में वो ख़लिश है जो कभी बचपन की यादें, तो कभी आखों में आंसू और कभी सीमा पर खड़े जवानों में जोश भरने के लिए काफी है। लता जी को फिल्मों में पार्श्वगायिका के रूप में कभी भी नहीं भुलाया जा सकता है। अब हम आपको विभिन्न दशकों जिसमें लता जी के गायिकी का अहम योगदान रहा है उनके बारें में बतायेंगे।
पचास का दशक: पचास के दशक में लता जी महान संगीतकारों के साथ काम किया जिसमें अनिल बिस्वास, एस डी बर्मन, जय किशन, मदनमोहन और नौशाद अली शामिल थे। लता जी ने नौशाद अली के लिए बैजू बावरा, कोहिनूर और मुगल-ए-आजम फिल्मों में बेहतरीन और सदाबहार गानें गायें। इसके अलावा लता जी ने एस डी बर्मन के लिए फिल्म साजा, देवदास और हाउस न0 420 के लिए गाना गाया। लता जी एस डी बर्मन की पसंदीदा पार्श्वगायिका थी। शंकर-जयकिशन के लिए लता जी ने फिल्म आह, श्री 420 और चोरी-चोरी के लिए बेहतरीन गानें गायें। यह सारी फिल्में पचास के दशक में प्रदर्शित हुई थी।
साठ का दशक: साठ के दशक में लता जी ने कई सदाबहार गीत गायें जो इस प्रकार है। सुनो सजना पपीहे ने, न जाने तुम कहाँ थे, महबूब मेरे महबूब मेरे, हमने देखी है इन आँखों की, वो शाम कुछ अजीब थी, आया सावन झूमके जैसे गानें गायें। किशोर दा के साथ लता जी ने एक सुपरहिट गाना गाया था जो आज भी लोंगों को आकर्षित करता है वह गाना है होठों पे ऐसी बात और इसके अलावा आज फिर जीने की तमन्ना है, गाता रहे मेरा दिल आदि गानें किशोर दा के ही थे जिसको लता जी ने अपनी सुरीली आवाज में गाकर अमर कर दिया।
सत्तर एवं अस्सी का दशक: सत्तर और अस्सी के दशक में जो गाने गायें वह है। गुम है किसी के प्यार में (रामपुर का लक्ष्मण), वादा करो नहीं छोड़ोगे तुम मेरा साथ (आ गले लग जा), वादा कर ले साजना (हाथ की सफाई), नहीं नही अभी नहीं (जवानी दीवानी), तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं (आँधी), मै जट यमला पगला दीवाना (प्रतिज्ञा), जाते हो जाने जाना (परवरिश), आज फिर तुम पे प्यार आया (दयावान), तुमसे मिलकर ना जाने क्यों (प्यार झुकता नहीं), जब हम जवां होगें (बेताब) जैसी फिल्मों में गाना गाया जिसके लिए उन्हें कई पुरस्कार भी मिलें। इन दशकों में लता जी ने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, मदनमोहन, सलील चौधरी और हेमन्त कुमार जैसे महान संगीतकारों के साथ काम किया।
लता मंगेशकर को मिले कई अवार्ड
साल 1958 में पहली बार मिला फिल्म फेयर अवॉर्ड
लता मंगेशकर को पहली बार फिल्म ‘मधुमति’ के गाने ‘आजा रे परदेसी’ के लिए सर्वश्रेष्ठ गायिका का फिल्म फेयर अवॉर्ड मिला था। उन्होंने कई सारे गाने गाए और संगीत में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें 1969 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। इतना ही नहीं 1999 में उन्हें पद्मविभूषण और 1989 में दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से नवाजा गया था।
लता मंगेशकर जिन्हें क्वीन ऑफ मेलडी भी कहा जाता है, को 1999 में महाराष्ट्र भूषण अवॉर्ड, साल 2001 में भारत रत्न, 3 राष्ट्रीय फिल्म अवॉर्ड और 1993 में फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से नवाजा गया था। 1948 से 1989 तक 30 हजार से ज्यादा गाने गाकर वह गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड भी कायम कर चुकी है।
आज भले ही लता दीदी हम लोगो के बीच नहीं रहीं, लेकिन उनके द्वारा गाए स्वर्णिम गाने सभी संगीत प्रेमियों को उनकी यादें दिलाती रहेंगी…
(सन्नी प्रियदर्शी)