आंदोलनरत छात्रों को मिला महागठबंधन का साथ, बिहार बंद को समर्थन
पटना : महागठबंधन ने संयुक्त रूप से प्रेस वार्ता कर कहा कि आरआरबी एनटीपीसी की परीक्षा के रिजल्ट में धांधली तथा ग्रुप डी की परीक्षा में एक की जगह दो परीक्षाएं आयोजित करने के तुगलकी फरमान के खिलाफ उठ खड़े छात्र युवा आंदोलन के प्रति सरकार का दमनात्मक रवैया घोर निंदनीय है। बर्बर पुलिसिया दमन, आंसू गैस, गिरफ्तारी व मुकदमे थोपकर सरकार आंदोलन को कुचलने की कोशिश कर रही है, जो कहीं से जायज नहीं है।
छात्र युवा आक्रोश का यह महाविस्फोट अकारण नहीं है। विगत 7 सालों में भाजपा के राज में वे अपने को लगातार छला महसूस कर रहे हैं। बिहार की सरकार ने भी उन्हें धोखा दिया है। ऐसी कोई परीक्षा नहीं है, जिसकी प्रक्रिया पूरी होने में कम से कम 5 से 7 साल का समय नहीं लगता हो, इससे लोग तंग आ गए हैं। बेरोजगारी का आलम यह है कि डी तक की परीक्षा में भी करोड़ों आवेदन आते हैं. बिहार में तो बेरोजगारी चरम पर है, इसलिए सबसे ज्यादा तीखा प्रतिवाद यहीं देखा जा रहा है।
तात्कालिक कारण रेलवे की एनटीपीसी (नन टेक्निकल पोपुलर कैटेगरी) 35277 पदों और ग्रुप डी की 1लाख 3 हजार रिक्तियों की परीक्षा को लेकर है। स्नातक स्तरीय 35277 पदों के पीटी रिजल्ट को लेकर उठाए जा रहे सवाल को समझने में रेलवे प्रशासन को क्या दिक्कत है, जो वह जांच कमिटी का झुनझुना थमा रही है। पीटी परीक्षा में पदों का 20 गुणा रिजल्ट देना था। रेलवे ने रिजल्ट भी इतना ही दिया है, लेकिन बड़ी संख्या में ऐस अभ्यर्थी हैं, जो एक से अधिक पदों पर चयनित हुए हैं। कोई एक अभ्यर्थी एक से अधिक पदों पर सफल हो सकता है, लेकिन वह एक अभ्यर्थी ही माना जाएगा और इसलिए उसकी गिनती एक व्यक्ति के बतौर ही होनी चाहिए न कि अनेक. इस तरह 7 लाख अभ्यर्थियों की जगह सही अर्थों में महज 2 लाख 76 हजार अभ्यर्थियों को ही चयनित किया जा रहा है और 4 लाख 24 हजार अभ्यर्थियों (यानी दो तिहाई) को चयन व दूसरी व अंतिम परीक्षा में शामिल होने के मौके से ही बाहर कर दिया जा रहा है। सौ. छात्र युवाओं की 7 लाख संशोधित रिजल्ट फिर से प्रकाशित करने की मांग एकदम जायज है। इन 35 हजार रिक्तियों पर करीब सवा करोड़ आवेदन आए थे। लेकिन कोरोना महामारी के कारण परीक्षा में केवल 60 लाख अभ्यर्थी ही शामिल हो सके थे।
ग्रुप डी के मामले में भी अभ्यर्थियों की साफ मांग है कि पहले के नोटिफिकेशन के आधार पर केवल एक परीक्षा ली जाए और दूसरे नोटिफिकेशन को रद्द किया जाए। विदित हो कि रेलवे ने अचानक दूसरी परीक्षा लेने का भी नोटिफिकेशन निकाल दिया, जिसके कारण ग्रुप डी के लड़के आक्रोशित हुए 1 लाख 3 हजार रिक्तियों पर 1 करोड़ 17 लाख आवेदन आए हैं। आंदोलन के दबाव में रेल मंत्री का पहले मामले में जांच कमिटी बनाने और ग्रुप डी की परीक्षा को रद्द करने का आश्वासन मामले को टालने व उलझाने जैसा है। जांच कमिटी को अपनी रिपोर्ट 4 मार्च तक जमा करने से साफ झलकता है कि उत्तरप्रदेश के चुनाव को देखते हुए रेल मंत्रालय ने यह कदम उठाया है। बिहार के विगत विधानसभा चुनाव में जिस प्रकार रोजगार एक बड़ा मुद्दा बना था, यूपी चुनाव के ठीक पहले छात्र युवाओं का यह आंदोलन भाजपा के लिए सरदर्द बन रहा है।
महागठबंधन के दल स्नातक स्तरीय परीक्षा में संशोधित 7 लाख रिजल्ट, ग्रुप डी में केवल एक परीक्षा और आंदोलन कर रहे छात्र युवाओं के दमन पर रोक लगाते हुए उनपर थोपे गए मुकदमों की वापसी की मांग के साथ खड़े हैं। उनके आंदोलन का हर तरह से समर्थन करते हैं तथा 28 जनवरी के बिहार बंद को सफल बनाने की अपील बिहार की जनता से करते हैं। सरकार छात्र युवाओं के इस आक्रोश को समझे तथा धैर्य व संयम का परिचय देते हुए उनकी मांगों को अलिवंब हल करने की दिशा में बढ़े।