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UP के असंभव मेल को रामचंद्र की लापरवाही बता वजूद मिटाने की ताक में ललन

जनता दल यूनाइटेड के अंदर वर्चस्व की लड़ाई तेज है, या किसी और के बीच नहीं, बल्कि पार्टी के दो रिष्ठ नेताओं के बीच की लड़ाई है। एक हैं जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह, तो दूसरे हैं नीतीश कुमार के भरोसेमंद और नौकरशाह से नेता बने आरसीपी सिंह के बीच। आरसीपी सिंह फिलहाल मोदी कैबिनेट में इस्पात मंत्रालय संभाल रहे हैं, जबकि मंत्री बनने की आकांक्षा पाले ललन सिंह न चाहते हुए भी पार्टी की बागडोर संभाले हुए हैं। वैसे, दोनो नेताओं के बीच रिश्ते में कड़वाहट तब से देखने को मिल रही है, जब आरसीपी सिंह के केंद्रीय मंत्री बनने के बाद उन्हें पार्टी अध्यक्ष की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। इसके बाद ललन सिंह को पार्टी अध्यक्ष बनाया गया था। तभी से वर्चस्व को लेकर दोनों के बीच राजनीतिक दांव-पेंच जारी है।

2007 में जमानत जब्त, 2017 में चुनाव नहीं लड़े, फिर भी इतनी सीटें?

आरसीपी सिंह और ललन सिंह के बीच इस समय कोल्ड वॉर जारी है। ताजा मामला है यूपी चुनाव को लेकर, जिसके लिए पार्टी अध्यक्ष ललन सिंह ने आरसीपी सिंह को भाजपा से बात करने के लिए अधिकृत किया था। पार्टी अध्यक्ष का कहना था कि भाजपा से कम से कम दो दर्जन सीटों पर समझौता करें। लेकिन, भारतीय जनता पार्टी दो दर्जन छोड़ सिंगल डिजिट में सीट देने के लिए तैयार नहीं हुई। इसको लेकर भाजपा नेताओं से मिली जानकारी के मुताबिक़ यह तर्क दिया कि जब आप 2007 में 16 सीटों पर चुनाव लड़े तो आपकी 12 सीटों पर जमानत जब्त हो गई। फिर आप 2017 का चुनाव भी नहीं लड़े, तो फिर आप इतने सीटों की डिमांड क्यों कर रहे हैं ,न ही आपके पास उम्मीदवार है। भाजपा यह हवाला देकर जदयू से मुँह फेर ली।

RCP को हाशिये पर लाने का प्रयास

बहरहाल, आरसीपी सिंह और ललन सिंह यह जान रहे थे कि भाजपा के साथ यह सौदा हो ही नहीं सकता। लेकिन, ललन सिंह को तो आरसीपी सिंह को पार्टी में हाशिये पर लाना था, इसके चलते वे लगातार मीडिया में यूपी चुनाव में भाजपा से गठबंधन को लेकर बयान देते रहे। अंत में जदय ने जबरदस्ती कुछ सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया। लेकिन, उम्मीदवार न होने की वजह से अभी तक सिर्फ सीटों का एलान होकर ही मामला आरसीपी सिंह के इर्द-गिर्द घूम रहा है। हर दिन ललन सिंह आरसीपी सिंह को दोषी ठहरा रहे हैं। अंत में आज ललन सिंह ने यह भी कह दिया कि बातचीत में तो हमलोग कहीं थे ही नहीं, आरसीपी जी जो कह रहे थे, वह सुन रहे थे। अब उन्हें भाजपा कितने विश्वास के साथ भरोसा दे रही थी, वह तो वे ही बता सकते हैं। इसका बेहतर जवाब वे ही दे सकते हैं।

मंत्री न बनने की टीस

जबसे आरसीपी सिंह केंद्र में मंत्री बने हैं, तब से ललन सिंह अपनी महत्वाकांक्षाओं को दबाए हुए आरसीपी सिंह से बदला लेने के लिए काफी प्रयासरत हैं। यह विदित है कि क्षेत्रीय पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की हैसियत कैबिनेट मंत्री के बराबर नहीं हो सकती। इस बात को ललन सिंह बखूबी से समझ रहे हैं। वैसे भी अभी जदयू में नीतीश कुमार के बाद पार्टी में ललन सिंह ही सबसे वरिष्ठ हैं। कई बार सांसद रह चुके हैं, बावजूद इसके बिहार कैबिनेट से आगे नहीं बढ़ पाए हैं। वहीं, सचिव बनकर नीतीश के साथ काम करने वाले आरसीपी सिंह आज ललन सिंह का पत्ता काटकर केंद्र में महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाल रहे हैं। इसी चीज से ललन सिंह चिढ़े हुए हैं। हालांकि, ललन सिंह को केंद्र में मंत्री नहीं बनाने को लेकर सबसे ज्यादा विरोध बिहार भाजपा के केंद्रीय स्तर के नेताओं ने की थी। इसके भी कई कारण हैं।

हाशिये पर लाने के बाद राजनीतिक पारी को ख़त्म करना चाह रहे!

बहरहाल, गठबंधन नहीं कराने के कारण आरसीपी सिंह को हाशिये पर लाने के बाद अब ललन सिंह इनके राजनीतिक पारी को खत्म करने के लिए नई चाल चले हैं। ललन सिंह ने आरसीपी सिंह यूपी चुनाव में जदयू के उम्मीदवारों के पक्ष में चुनावी सभा करवाना चाह रहे हैं और इसको लेकर यह तर्क दिया जा रहा है कि सिंह लम्बे समय तक यूपी में आईएएस अधिकारी के रूप में काम किये हैं, लिहाजा उन्हें यूपी के बारे ज्यादा समझ होगी। वहीं, सियासी चाल की बात करें तो ललन सिंह आरसीपी सिंह को चुनावी मैदान में उतारकर उन्हें भाजपा के खिलाफ करने में जुटे हैं। अगर, ऐसा हो जाता है तो आरसीपी सिंह का राजनीतिक वजूद जदयू के अंदर प्रभावविहीन हो जाएगा और ललन सिंह अपने मंसूबे में सफल हो सकते हैं !