नहाय खाय के साथ शुरू छठ का चार दिवसीय महापर्व
आरा : भोजपुर जिला में लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व छठ नहाय खाय के साथ आज से शुरू हो गया| इस बार महापर्व पर ग्रह-गोचरों का शुभ संयोग बना है। व्रतियों ने नहाय-खाय के दिन जिले के बिभिन्न नदियों तथा तालाबों में स्नान करने के बाद प्रसाद स्वरूप अरवा चावल, चना की दाल, कद्दू की सब्जी शुद्ध घी एवं सेंधा नमक में बनाकर, आंवले की चटनी आदि ग्रहण कर चार दिवसीय पर्व का अनुष्ठान शुरू किया|
सुबह से ही जिले के विभिन्न घाटों पर व्रतियों की भीड़ उमड़ पड़ी। ज्योतिषाचार्य पंडित ओम प्रकाश मिश्र ने बताया कि सुकर्मा योग में नहाय-खाय के दिन व्रती प्रसाद ग्रहण करेंगे तथा मंगलवार नौ नवंबर को लोहंडा यानी (खरना), 10 नवंबर बुधवार को सायंकालीन अर्घ्य एवं 11 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रती महापर्व का समापन करेंगे|
सोमवार को नहाय-खाय के बाद कार्तिक शुक्ल की पंचमी मंगलवार को व्रती पूर्वाषाढ़ नक्षत्र व रवियोग में खरना का प्रसाद खीर, रोटी ग्रहण करने के बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत रखेंगे। प्रसाद ग्रहण करने के पश्चात चंद्रमा को नमन करने की परंपरा है। बुधवार 10 नवंबर को सूर्योपासना के तीसरे दिन छठ व्रती डूबते सूर्य को अघ्र्य देंगे| डूबते सूर्य को अघ्र्य देने से मानसिक शांति, उन्नति और प्रगति होती है। उसके बाद गुरुवार यानी 11 नवम्बर को छठ व्रती उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ महापर्व का समापन करेंगे।
इस दौरान मिट्टी के बरतन और चूल्हे का बड़ा महत्व होता है. गेहूं धोकर पूरी पवित्रता के साथ उसे सुखाया जाता है, फिर जाते में उस गेहूं को पीसा जाता है. उसी आटे का पकवान बनाकर भगवान भास्कर को अर्पित किया जाता है. बता दें कि घरों की छतों पर गेहूं सूखने के दौरान पवित्रता का पूरा खयाल रखा जाता है.
छठ महापर्व को लेकर शहर के बाजारों में रौनक बढ़ गई है। शहर के विभिन्न इलाकों की सड़कों के दोनों ओर फल व पूजन सामग्री की दुकानें खुल गई है। महापर्व छठ को लेकर आज बाजारों में लोगों ने नहाय-खाए को लेकर लौकी की खरीदारी की। आरा के सब्जी गोला में लौकी 50 से 60 रुपये प्रति पीस के भाव से बिका। कई जगह 70 से 80 प्रति पीस के भाव से लोगो ने लौकी की खरीदारी की।
इस मौके पर छठ व्रत को लेकर नदी, नहर, तालाब आदि को साफ किया गया है, कोरोना संक्रमण के चलते आमलोगों और श्रद्धालुओं से विशेष सतर्कता बरतने का अनुरोध किया गया है. प्रशासन के स्तर पर भी इसका खास ख्याल रखा जा रहा है. छठ महापर्व कोविड प्रोटोकॉल के तहत मनाया जाए इसको लेकर व्यापक पैमाने पर तैयारी की गई है. स्थानीय प्रशासन कई टीमें बनाकर इस पर विशेष ध्यान रख रहा है.
सामाजिक समरसता का अनूठा उदाहरण है महापर्व छठ
आरा : वैसे तो भारत प्राचीन काल से ही सामाजिक समरसता का हिमायती रहा है और यहाँ सभी धर्मो को सम्मान मिलता रहा है| हालांकि आज के परिवेश में कुछ कलुषित भावनाए घर कर गयी है और एक धर्म के लोग दूसरे धर्म के लोगों को तथा एक जाति के लोग दूसरी जाति को नीचा दिखा रहे है जिसकी वजह से पुरे समाज में वैमस्य की भावना भर गयी है और वो पुराना वाला दिलों का प्रेम खत्म हो गया है जब सभी जाति और धर्म के लोग मिलजुलकर सभी पर्व या त्यौहार प्रेम और आनंद से मनाते थे| पर अंधकारमय वातावरण में एक चमकती हुयी चीज़ महापर्व छठ जो सामाजिक समरसता तथा सद्भावना का सन्देश देता है| एक ही घाट पर ब्राह्मण एवं दलित या मुस्लिम हो साथ बैठकर सूर्य उपासना करते हो। यह बात अपने आप में सामाजिक समरसता का अन्यतम उदाहरण है। लोक आस्था का पर्व छठ की विशेषता रही है कि इसमें समाज के हर तबके के लोगों की भागीदारी होती है।
भगवान भाष्कर बिना उंच नीच का भेद किये सभी पर अपनी ऊर्जा समान रूप से बिखेरते है।छठ के मौके पर लोगों के बीच सामाजिक समरसता अद्भुत नजारा प्रायः प्रत्येक नदी, नहर, पोखर, तालाब आदि पर देखने को मिलता है। इस पर्व में अस्ताचलगामी सूर्य उपासना की परंपरा रही है। निस्तेज सूर्य संभवतः दबे-कुचले लोगों को मान-सम्मान देने तथा उन्हें साथ लेकर चलने की परंपरा पर अपनी मुहर लगाता है।
छुआछूत की कुंठित भावना से ऊपर उठकर लोग एक साथ मिल बैठकर व्रत का पालन करते है। कुंठित मानसिकता को त्यागकर सूर्योपासना में सभी वर्गों का सहयोग होता है। वास्तव में छठ का महापर्व व्यापकता के लिए आता है। आस्था, प्रेम, स्वच्छता तथा पवित्रता इस पर्व की बड़ी खासियत है। यह पर्व व्रतधारियों में अपने आराध्य के प्रति असीम श्रद्धा प्रदान करता है। सभी मिलकर गली-सड़कों एवं नालियों की साफ सफाई करते है। हर कोई बिना किसी भेदभाव के एक-दूसरे की मदद करने के लिए आतुर रहते है। पर्व में सामाजिक व आर्थिक दीवारें ढह जाती है।
वही उदीयमान सूर्य की उपासना सुख-समृद्धि, आरोग्य तथा विकास का प्रतीक माना जाता है, जो मानव मन में नवीन ऊर्जा का संचार करता है। व्रती शारीरिक व मानसिक शुद्धि को प्राप्त होते है। जाति रहित परंपरा ही छठ की बढ़ती लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह पर्व काफी शुद्धता के साथ मनाया परन्तु इसका कलसूप समाज के सबसे निचे पावदान में रहने वाले लोग जिन्हें आज अछूत भी कह दिया जाता है, बनाते है|
महापर्व छठ लोगों को जल संरक्षण व उसकी अनिवार्यता की सीख देता है। यही कारण है कि छठ पर्व के मौके पर व्रतवारी नदी, नहर, तालाब तथा पोखर के पानी में खड़े होकर भगवान सूर्य को अध्य अर्पित करते है।भगवान सूर्य अनवरत रुप से उर्जा प्रदान करने वाले एकमात्र सोत है। पेड़-पौधों तथा जीव-जंतुओं के लिए इसकी अनिवार्यता है। उर्जा के इस विशाल स्रोत को नमस्कार अर्ध्य देना इसकी महत्ता एवं अनिवार्यता को स्वीकारने की सीख देता है।
छठ पर्व में आस्था को प्रकट करने में कृषि तथा प्राकृतिक संरक्षण को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। पूजा की सामग्री के रूप में नारियल, सेव, घाघर (चकोतरा), नींबू, हल्दी, शकरकंद, नारंगी, सरीफा, आंवला, अन्नानास, केला, अंकुरित चना, चावल, गेहूं, पानी फल, कद्द तथा कोहडा आदि मौसमी कृषि उत्पादों की उपस्थिति जरूरी है, यही इसके संरक्षण को बल देती है। आस्था के पर्व में आम के दातून, आम की लकडी, बांस से बनी कलसूप एवं टोकरी सभी प्रकृति द्वारा प्रदत्त सामग्री से बनी हुई रहती है। यह महापर्व हमें पेड़-पौधों के रोपण तथा उनके संरक्षण की सीख देता है।
सामाजिक सामंजस्य स्थापित करनेवाला त्योहार माना जाता है। छठ के अवसर पर गलियो, सड़कों एवं नालियों की साफ-सफाई मिलजुलकर करना। इसकी अभिव्यक्ति है। व्यक्ति स्वयं एक – दूसरे के सहयोग के लिए आतुर है। घाट बनाने, व्रतियों को सुविधा देने, अर्ध्य हेतू दूध बांटने, व्रतधारियों को चाय पिलाने, उनकी मदद करने में लोग तत्पर रहते है। किसी से भी मांग कर प्रसाद खाना तथा किसी को सहयोग करना इसकी सामाजिक सामंजस्य एवं सौहार्द को बल देता है तथा में समाज में एक-दूसरे के प्रति प्रेम प्रतिपादित करता है|
छठ के लिए चूल्हे बना रहीं मुस्लिम महिलाएं, दे रही हैं सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश
आरा : लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा में धर्म या महजब का भेद मिट जाता है एक तरफ दुनिया में पान इस्लामिज्म की बात हो रही है वहीँ भोजपुर जिले में सड़कों पर तथा गाँव में छठ पूजा के लिए मिट्टी के चूल्हे मुस्लिम महिलाएँ बना रही है जो साम्प्रदायिक सद्भाव का अनूठा उदाहरण है| ये महिलाएं नियमों का पालन करते हुए चूल्हे बनाने में जुटी हैं. छठ का प्रसाद बनाने हेतु मिट्टी के चूल्हे बनाने का काम महीनों पहले से आरंभ हो जाता है। मुस्लिम महिलाएं छठी मइया के प्रति आस्था रख चूल्हे का निर्माण किया है। महिलाएं चूल्हे बनाने के साथ समाज में सौहार्द का संदेश देती हैं. सौहार्द के चूल्हे पर आस्था का प्रसाद बनेगा।
सूर्य की उपासना का महापर्व छठ सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश करता है. छठ व्रती जिस कच्चे चूल्हे पर महापर्व छठ का प्रसाद बनाती हैं इसका निर्माण वर्षों से मुस्लिम महिलाएं कर रही हैं. भोजपुर जिला मुख्यालय आरा में मिट्टी के चूल्हे बनाने में व्यस्त सबीना खातून छठी मइया को लेकर बीते कई वर्षों से मिट्टी के चूल्हे बनाती रही हैं. इसे बनाने को लेकर काफी शुद्धता और नियमों का पालन करती हैं. चूल्हे बनाने के दौरान लगभग एक महीने तक शुद्धता का ध्यान रखती हैं.। चूल्हे बनकर तैयार होने तक मांस-मछली का सेवन नहीं करतीं हैं. नहा-धोकर चूल्हे को तैयार करती हैं.
चूल्हे बनाने वाली निखद खातून बताती हैं कि कई महिलाएं इस पुनीत कार्य में लगी हैं. ये सारी मुस्लिम महिलाएं सेवा भाव से चूल्हे का निर्माण करती हैं ताकि छठी मैया की कृपा परिवार पर बनी रहे. चूल्हे बनाने के लिए चिकनी मिट्टी बाहर से मंगाया जाती है. सुबह से शाम तक एक दिन में 12-15 चूल्हे तैयार होते हैं. चूल्हे तैयार होने के बाद इसे सावधानी से धूप में सुखाया जाता है.बीते वर्ष कोरोना संक्रमण के कारण चूल्हे का निर्माण कम हुआ था. इस बार उम्मीद है कि चूल्हे की बिक्री ठीक होगी. इन महिलाओं ने बताया कि बीते वर्ष 70-80 रुपये में बिक्री हुई थी, लेकिन इस वर्ष मिट्टी के दाम बढऩे से सौ रुपये में चूल्हे के दाम भी बढ़ गए है। ढाई हजार से तीन हजार रुपये की बीच एक टेलर मिट्टी की कीमत होती है।
राजीव एन अग्रवल की रिपोर्ट