पेट की ज्वाला ले जा रही घर- प्रदेश से बाहर

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– पंचायत चुनाव के बावजूद हर दिन हो रहा मजदूरों का पलायन

नवादा : जिले में चुनाव आयोग के द्वारा 10 चरणों में पंचायत चुनाव कराए जाने की घोषणा की गई है। जिसकी प्रक्रिया चल रही है। तय क्षेत्रों में तीन चरण में मतदान संपन्न भी हो चुका है। बावजूद लोकतंत्र के महापर्व पंचायत चुनाव में भाग लेने के बजाय पेट की ज्वाला को शांत करने के लिए हर रोज क्षेत्र से हजारों की संख्या में मजदूरों का पलायन बिना रोक-टोक जारी है।

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बता दें जिले में तीन चरण का पंचायत चुनाव संपन्न हो चुका है। जिसमें दो चरणों में क्षेत्र के महादलित समुदाय के लोग महापर्व का हिस्सा बन चुके हैं। लेकिन जितिया पर्व समाप्त होते ही ठेकेदारों का दबाव मजदूरों को ले जाने के लिए पड़ने लगा और पंचायत चुनाव को नजरअंदाज कर हर रोज हजारों मजदूर रोजी रोजगार के लिए दूसरे प्रदेश के ईंट-भट्ठों पर जाना शुरू कर दिया।

क्षेत्र के मजदूर जिनके दरवाजे पर पंचायत प्रतिनिधि बनने वालों का जाना आना शुरू हो गया है। बावजूद लोकतंत्र के महापर्व में भाग लेने के बजाय पेट की ज्वाला से निजात पाने के लिए रोजगार के लिए दूसरे प्रदेशों में मजदूरों का पलायन का सिलसिला बिना रोक-टोक निरंतर जारी है। जिस कारण महादलित परिवारों के भरोसे पंचायत जनप्रतिनिधि बनने का सपना पाल रखे पंचायत चुनाव लड़ने वाले भावी उम्मीदवारो के ललाट पर परेशानी की लकीरें दिखनी शुरू हो गयी है। कुछ माह पहले ईट भट्ठा पर काम करने के लिए ठेकेदारों से राशि ले चुके महादलित परिवार को भावी जनप्रतिनिधि व प्रशासनिक अधिकारी रोक पाने में विफल हो रहे हैं।

चुनाव परिणाम बदलने की रखते हैं हैसियत, लेकिन मतदान से रह जाते हैं वंचित:-

सभी प्रखंडों के ग्राम पंचायतों में महादलित खासकर मांझी व चौहान जाति के लोगों की संख्या अच्छी खासी है। कुछ पंचायत में इन जातियों की अत्यधिक संख्या है जो चुनाव परिणाम को बदल देने की क्षमता रखते हैं। लेकिन किसी प्रकार का कार्य या रोजगार घर पर नहीं होने के कारण इन्हें ईट भट्ठा पर दूसरे प्रदेश जाने को मजबूर होना पड़ता है। इसके लिए ठेकेदार से पैसा ले चुके मजदूर मजबूर होकर दूसरे प्रदेश जाने को विवश हैं। जिस कारण अपना जनप्रतिनिधि बनाने की क्षमता रखने के बावजूद मतदान में भाग नहीं लेने के कारण अपना जनप्रतिनिधि बना पाने से वंचित रह जाते हैं। इन महादलितों के बिना मत प्राप्त किए निर्वाचित जनप्रतिनिधि के द्वारा इन मोहल्लों में विकास कार्य पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है।

अपने घर में ही तीन माह प्रवासी बनकर रहते हैं महादलित:-

जून-जुलाई माह में बरसात शुरू होने पर ईट भट्ठा पर काम बंद हो जाने के कारण महादलित परिवार घर पहुंच जाते हैं। जहां धान रोपनी में इन मजदूरों का भरपूर सहयोग प्राप्त होता है। लेकिन धान रोपनी समाप्त होने के बाद बरसात कम होने की स्थिति में पुनः जीवित्पुत्रिका व्रत के बाद से ही मजदूरों का पलायन ईट भट्ठा पर होना शुरू हो जाता है। जो दीपावली के बाद लगभग महादलित मोहल्ला के महिला पुरुष युवाओं से खाली हो जाती है।

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